देहरादून-: सोशल मीडिया के जमाने आजकल जो सोशल प्लेटफार्म पर परोसा जा रहा है हम लोग भी चुपचाप वह दिखाने वाले के अंदाज़ व नजरिये से ग्रहण कर रहे है,उसमे सच क्या है और उसके पीछे की वजह क्या है वह ढूंढने के बजाय ख़ाकी के खिलाफ वीडियो के आधार पर धारणा बना रहे है और कुछ लोग दो कदम आगे आकर ख़ाकी को भला बुरा भी कह रहे है।
आज सोशल मीडिया में सुबह से प्रसारित हो रहे एक वीडियो में सुभाष रोड स्थित पुलिस मुख्यालय के पास एक महिला पुलिस कर्मी द्वारा यातायात व्यवस्थित करते हुए दिखाया गया है। इस बीच एक व्यक्ति द्वारा मुख्यालय के सामने रोड पार ट्रैफिक सेफ्टी कोन को हटाते हुए अपना चौपहिया वाहन वहां लगा दिया, जिसपर महिला पुलिस कर्मी द्वारा उक्त व्यक्ति को वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश का हवाला देते हुए वाहन पार्क न करने को कहा गया तो उक्त व्यक्ति द्वारा सीधे अपने जेब से फोन निकालकर उक्त महिला पुलिस कर्मी की वीडियो शूट पर समाज को 'खाकी की सच्चाई' से वाकिफ करवाने का जिम्मा उठाते हुए दिखाया जा रहा है व महिला कर्मी के पूर्ण धैर्यता व अपने सीओ के आदेश के अनुसार ही व्यवस्था बनाने की प्रतिबद्धता का हवाला देने के बावजूद आदमी द्वारा वीडियो में महिला पुलिस कर्मी के पार्किंग को लेकर उससे ज़्यादती करते हुए दिखाया है।
उक्त वीडियो बनाने भर की देर थी कि उस व्यक्ति द्वारा पुलिस की मनमानी का राग अलापते हुए सोशल मीडिया पर उक्त वीडियो पोस्ट की और कुछ घंटों में वह न्यूज़ बन गयी,जिसके बाद ख़ाकी की गलतियों को ढूंढने वालो की हर तरफ बाढ़ है, और कुछ मीडियाकर्मी भी शायद ख़ाकी की उस गलतिके इंतज़ार में थे और उनके द्वारा भी ख़ाकी की उस गलती को जमकर प्रसारित किया गया। और हम आम जनता के तो कहने के सोशल मीडिया में एक से दूसरे से दूसरे से तीसरे तक तैरते आये उस वीडियो मे लोगो ने ख़ाकी को 'मनमाना' व 'रुल्स ओनली फ़ॉर कॉमन पीपल,' का टैग पुलिस पर मढ़ते हुए महिला कर्मी समेत पुलिस प्रशासन की की बुराई भी की। जबकि उक्त महिला पुलिसकर्मी की उस वक़्त आला अधिकारियों द्वारा बनाई गई व्यवस्था का अनुपालन करने व उक्त व्यक्ति द्वारा जबरन वीडियो बनाने के बावजूद भी धैर्यता से अपनी बात रखना की खाकी खूबी नजर नही आयी।
वहीं बिन तथ्यों को परखे हुए, बिन सोचे समझे पुलिस पर बनाये गए वीडियो से कुछ तथकथित पत्रकारों को अपने सच्चे स्तम्भकार होने का भ्रम बन जाता है। हम जनता भी बायस्ड है जो गलत आदमी की दादागिरी को चुपचाप सुन जो रही थी। अगर चुप रहे तो जनता सिर पर बैठने को तैयार रहती है। और सख़्ती करे तो अधिकारी चुप करा देतें है। ऐसे लोगो पर कानूनी कार्यवाही होनी अति आवश्यक हो जाती है वरना पुलिस का मनोबल नीचे गिर जाता है।